What is Atomic Structure in Hindi
Table of Contents / लेख-सूची
प्रिय मित्रों, आज हम आपके बीच What is Atomic Structure in Hindi के सभी परमाणु मॉडल के बारे में व्याख्या में बताया गया है | इस What is Atomic Structure in Hindi में कई परमाणु मॉडल है जैसे : थॉमसन परमाणु मॉडल, रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल, बोर का परमाणु मॉडल, एवं प्लाक का क्वाण्टम सिद्धान्त आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध है | इस What is Atomic Structure in Hindi में परमाणु मॉडल की सम्पूर्ण जानकारी के साथ साथ दोष, सिद्धान्त आदि भी शामिल है |
पमाणु मॉडल (Atomic Model)
परमाणु को संरचना कैसी है क्या है आदि को समझाने के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय-समय पर अपने अनुसार एक एक मॉडल प्रस्तुत किए। इनमे से कुछ विशेष मॉडल के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित है:-
थॉमसन परमाणु मॉडल (Thomson’s Atomic Model)
सन् 1904 में जे जे थॉमसन अपने अनुसार प्रथम परमाणु मॉडल को तैयार व प्रस्तुत किया था | उनके तथा परमाणु मॉडल के अनुसार परमाणु एक धनावेशित पदार्थ से बना एक गोला है जो धनावेशित पदार्थ एकसमान रूप से वितरित रहता है और इलेक्ट्रॉन इस धनावेश में व्यवस्थित रहते हैं ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार तरबूज में उसके बीज जगह जगह धँसे रहते हैं | इस मॉडल को कई नामो से जाना गया और इस मॉडल के कुछ महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध नाम निम्नलिखित है :-
- थॉमसन परमाणु मॉडल
- तरबूज मॉडल (Watermelon Model)
- प्लम-पुडिंग मॉडल (Plum Pudding Model)
- रेजिन-पुडिंग मॉडल (Raisin Pudding Model)
थॉमसन के परमाणु मॉडल को इन नामो से जाना गया, लेकिन अंत में यह मॉडल विफल रहा जिसका कारण है कि मॉडल स्पेक्टूम की उत्पत्ति की व्याख्या णा कर पाया जिसके कारण विफल रहा |
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल (Rutherford’s Atomic Model)
सन् 1911 में रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल में रदरफोर्ड ने मार्सडन के सहयोग लिया और उसके पश्चात् ∝-कणों के प्रकीर्णन के प्रयोग से परमाणु की सभी आन्तरिक व्यवस्था से सम्बन्धित एक आश्चर्यजनक तथ्य का पता लगाया था। रदरफोर्ड में परमाणु मॉडल बनाने के दौरान धातु की पतली पन्नी ली जैसे सोना, चाँदी आदि धातु की पतली पन्नी ली और उस पर तीव्र ∝ कणों की बौछार कर दी | ∝-कणों को रेडियोऐक्टिव पदार्थ रेडियम से प्राप्त किया गया था |
जब रदरफोर्ड ने सोने की पतली पन्नी के द्वारा जब ∝- कणों के प्रकीर्णन किया तो कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकला था |
- अधिकांश ∝-कण परमाणु से ठीक सीधे निकल गए, जिसका अर्थ है कि परमाणु का जो अधिकांश भाग होता है वह रिक्त होता है।
- कुछ ∝-कण होते है वो अपने मार्ग से थोड़ा सा विचलित होते हैं जिसका अर्थ है परमाणु में कुछ कण होते है वह धनावेशित एवं भारी कण होते हैं।
- अंत में यह देखा गया की बहुत कम ∝-कण जो होते है वे अपने मार्ग से वापस हो जाते है। जिसका निष्कर्ष यह होता है कि परमाणु का समस्त भार एवं कुल धनावेश उसके केन्द्र में एक सूक्ष्म स्थान में स्थित होता है।
इन सभी प्रयोग तथा निष्कर्षों के बाद उसके आधार पर रदरफोर्ड ने परमाणु माडल को प्रस्तुत किया। इसके अनुसार परमाणु से सम्बन्धित यह निष्कर्ष निकले
- परमाणु बिलकुल सूक्ष्म तथा गोलाकार विद्युत उदासीन कण होता है।
- परमाणु का सारा धनावेश उसके खुद के केंद्र में स्थित रहता है और उस क्रेंद्र को परमाणु का नाभिक कहा जाता है | इस नाभिक में प्रोटीन एवं न्यूट्रॉन रहते है |
- इलेक्ट्रॉन उस नाभिक के चारों ओर रहते हैं तथा इलेक्ट्रॉनों की संख्या ठीक प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है और इसी कारण से परमाणु विद्युत उदासीन होता है।
- रदरफोर्ड ने परमाणु की त्रिज्या का भी अनुमान लगाया था और वो थी परमाणु की त्रिज्या 10-8 सेमी तथा नाभिक की त्रिज्या का अनुमान 10-13 से 10-12 सेमी बताई थी।
रदरफोर्ड के मॉडल की रचना ठीक सूर्यमण्डल के जैसी थी क्यूंकि जिस प्रकार ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं ठीक उसी प्रकार इलेक्ट्रॉन उस नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और इस मॉडल को सौर मॉडल के नाम से भी जाना गया |
रदरफौर्ड मॉडल के दौष (Drawbacks of Rutherford’s Model)
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कुछ दोष भी पाए गए थे जिसके कारण अंत में इस मॉडल को भी असफल बताया गया | रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कुछ दोष इस प्रकार पाए गए थे जैसे-क्लार्क मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त के अनुसार एक गतिशील विद्युत आवेशित कण जो होते है वो निरन्तर विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करते रहते है, इसी महत्वपूर्ण कारण से यह कहा गया कि इसके पथ की त्रिज्या धीरे-धीरे कम होती जाएगी और बिलकुल अंत में किसी प्रकार से इलेक्ट्रॉन नाभिक में गिरकर व अलग होकर परमाणु को नष्ट कर देगा, परन्तु यह सम्भव नहीं है, इसका मुख्य कारण यह है कि परमाणु पर्याप्त स्थायी होता है। इसके बाद यह देखा गया कि रदरफौर्ड मॉडल भी रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या को रहने में विफल रहा |
बोर का परमाणु मॉडल (Bohr’s Atomic Model)
नील्स बोर सन् 1913 में रदरफोर्ड के द्वारा बनाई गयी परमाणु मॉडल के दोषों को निकलकर उनकी व्याख्या की | दोषों की व्याख्या करने के बाद बोर अपना परमाणु मॉडल को प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर प्रस्तुत किया था । इसके अनुसार कुछ यह निष्कर्ष देखे गए
- बोर के अनुसार परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर एक बन्द वृत्तीय कक्षाओं में सदैव घूमते रहते हैं और इन सभी कक्षाओं के नाम कुछ इस प्रकार दिया गया को नाभिक से क्रमश: K, L, M, N या 1, 2, 8, 4 है।
- इलेक्ट्रॉन जो होते है वें केवल उन्हीं कक्षाओं में घूमते हैं जिनमें उनका जो कोणीय संवेग A/27 का पूर्ण गुणक होता हो।
कोणीय संवेग, mvr = n h/2π, n = 1,2,3….
इस समीकरण में, m इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान होता है, r को कक्षा की त्रिज्या तथा v को इलेक्ट्रॉन का वेग से प्रकाशित करते है और यहाँ h को प्लांक नियतांक कहते हैं।
अगर कोई इलेक्ट्रॉन कक्षा nवीं में घूम रहा है तो उस कक्षा की ऊर्जा E = -Rhc/n^2
जहाँ पर =
R = रिड्बर्ग नियतांक,
h = प्लांक नियतांक,
c = प्रकाश का वेगको प्रकाशित करता है |
- इलेक्ट्रॉन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बिन्धू यह है कि इलेक्ट्रॉन जब वृत्तीय कक्षकों में घूमता है तो, वह न तो ऊर्जा उत्सर्जित करता है और वह न ही ऊर्जा ग्रहण करता है। इसी कक्षकों को हम स्थिर कक्षा या स्थिर ऊर्जा स्तर अथवा ऊर्जा स्तर कहते हैं।
- इलेक्ट्रॉन से सम्बन्धित अन्य बिंदु यह है कि जब इलेक्ट्रॉन किसी भी उच्च ऊर्जा वाली कक्षा से निम्न ऊर्जा वाली कक्षा में लौटता है तो विद्युत जो होती है वह चुम्बकीय तरंगों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करती है। अगर कक्षाओं की ऊर्जाएँ क्रमश: E1 व E2 हो तथा उत्सर्जित फोटॉन की आवृत्ति v हो तो समीकरण यह होगा |
hv – E1 = E2
यदि जब इलेक्ट्रॉन कभी एक ऊर्जा स्तर से किसी दूसरे ऊर्जा स्तर में कूदता है तब तो ऊर्जा का उत्सर्जन करता है वो भी केवल क्वाण्टा (Quanta) के रूप में |
प्लांक का क्वाण्टम सिद्धान्त (Planck’s Quantum Theory)
प्लाक का क्वाण्टम सिद्धान्त के अनुसार ‘यदि किसी वस्तु से प्रकाश और ऊष्मा जैसी विकिरण ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण सतत् नहीं होता, बल्कि असतत् रूप से छोटे-छोटे संवेष्ट (Packets) में होता है, जिन्हें क्वाण्टम कहते हैं।
एक क्वाण्टम की ऊर्जा को व्यक्त करने के लिए इस समीकरण का प्रयोग करते है :
E = hv
या E = hclλ.
जहाँ, h = प्लांक स्थिरांक,
v = विकिरण की आवृत्ति,
C = प्रकाश का वेग,
λ = विकिरण की तरंगदैर्ध्य
परमाणु क्रमांक (Atomic Number)
किसी भी तत्व के परमाणु क्रमाक किस प्रकार ज्ञात किया जाता है वह परिभाषा निम्न है: किसी भी तत्व के जो परमाणु के नाभिक में मौजूद सभी प्रोटॉनों की संख्या ही उस तत्व की परमाणु क्रमांक (Z) ही कहलाती है। अगर कोई भी परमाणु विद्युत उदासीन है तो इसका तत्पर्य है कि उसमे प्रोटॉनों की संख्या तथा इलेक्ट्रॉनों की संख्या बराबर है।
परमाणु क्रमांक (Z) = प्रोटॉनों की संख्या (p) = इलेक्ट्रॉनों की संख्या (e)
द्रव्यमान संख्या (Mass Number)
द्रव्यमान संख्या को ज्ञात करने के लिए परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों दोनों की संख्याओं को यदि योग करें तो हमे परमाणु की द्रव्यमान संख्या प्राप्त होगा जिसे हम परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) भी कहते हैं।
द्रव्यमान संख्या (A) = प्रोटॉनों की संख्या (p) + न्यूट्रॉनों की संख्या (n)
परमाणु भार (Atomic Weight)
परमाणु भार का तात्पर्य यह है कि किसी भी तत्व का परमाणु भार वह संख्या होती है, जो यह प्रदर्शित करती है कि वह तत्व का एक परमाणु कार्बन के द्रव्यमान के 1/12 भाग से कितने अधिक गुना भारी है। इसके लिए महत्वपूर्ण समीकरण है :
परमाणु भार = तत्व के परमाणु का द्रव्यमान / कार्बन परमाणु के द्रव्यमान का बारहवां भाग
प्रकृति में जितने भी पाये जाने वाले अधिकतर तत्व अपने समस्थानिकों के मिश्रण के रूप में पाये होते हैं अतः परमाणु भार प्राय: भिन्नात्मक (Fraction) होते हैं ।
अणुभार (Molecular Weight)
अणुभार किसी भी पदार्थ का वह संख्या है, जो कि यह प्रदर्शित व ज्ञात कराती है कि उस पदार्थ का एक अणु कार्बन-12 समस्यानिक के एक परमाणु के भार के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है।
पदार्थ का अणुभार
= पदार्थ के एक अणु का भार / 1/12 कार्यन 12 के एक परमाणु का भार
अणुभार की गणना करने के लिए किसी भी यौगिक में जो उपस्थित विभिन्न तत्वों के परमाणु द्रव्यमानों को जोड़कर अणुभार की गणना की जाती है |
उदाहरण के लिए : CaCl2 का अणुभार
= Ca की परमाणु भार + 2x Cl का परमाणु भार
= 40.08+ 2x 35.45 = 110.98
पदार्थी की दवैती प्रकृति
तुईस दे-ब्रॉग्ली ने कुछ महत्वपूर्ण तथ्य बताये थे कि हर एक पदार्थ की प्रकृति दवैती होती है जिसका अर्थ है कि प्रकाश और अन्य विद्युत चुम्बकीय विकिरणों की द्वैती प्रकृति के समान पदार्थ भी कण और तरंग दोनों ही प्रकार के गुण को प्रदर्शित करते हैं ।
λ = h/mv = h/p
जहाँ, h = प्लांक स्थिराक,
m = इलेक्ट्रोन का द्रव्यमान
v = इलेक्ट्रॉन का वेग,
λ = तरंगदेध्य,
P= संवेग
हाइजेनबर्ग का अनिश्चित्ता का सिद्धान्त (Heisenberg’s Uncertainty Principle)
हाइजेनबर्ग का अनिश्चित्ता का सिद्धान्त में यह बताया गया है कि कोई भी सूक्ष्म कण (छोटे छोटे कणों) की स्थिति और वेग को एक साथ यथार्थ निर्धारण करना एक असम्भव कार्य है। यदि गणितीय रूप में इसे देखे तो, स्थिति में अनिश्चित्ता ∆r और संवेग में अनिश्चित्ता ∆P होगा, और इस सिद्धान्त के अनुसार, समीकरण यह होगा |
∆x. ∆P≥ h/4π
परमाणु कक्षक (Atomic-Orbital)
इलेक्ट्रॉन की तरंग प्रकृति पर आधारित है जो आधुनिक विचारों के अनुसार परमाणु नाभिक के चारों ओर स्पष्ट वृत्तीय कक्षाएँ नहीं होती हैं, लेकिन नाभिक के चारों ओर विभिन्न आकृति के त्रिविम क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनों के पाए जाने की प्रायिकता अधिकतम होती है तथा इसी क्षेत्रों को परमाणु कक्षक के नाम से जाना जाता है
दूसरे शब्दों में कहे तो, केन्द्रक के वह बाहर का भाग जहाँ इलेक्ट्रॉन के पाये जाने की जो सम्भावना है वह बहुत अधिक होती है वह क्षेत्र कक्षक (Orbital) कहलाता है | इस कक्षक के चार प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित है :- s, p, d, तथा f हैं।
ये नाम स्पेक्ट्रम के आधार पर रखे अगये है जिसका तात्पर्य यह है : s, p, d, तथा f क्रमश: Sharp (तीक्ष्ण), Principal (मुख्य), Diffuse (विसरित) तथा Fundamental (मूल) हैं | किसी भी एक कक्षक में अधिक से अधिक दो इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं । अत: s, p, d, तथा f कक्षकों में इलेक्ट्रॉन की संख्या क्रमश: 2, 6, 10 तथा 14 तक हो सकती हैं।
कक्ष (कोश)
| मुख्य क्वाण्टम अंक, n | कक्षकों की संख्या, n^2 | कक्षक के प्रकार s,p,d,f | अधिकतम इलेक्ट्रॉनों, 2n^2 |
K | 1 | 1 | 1,—- | 2 |
L | 2 | 4 | 1.3,—– | 8 |
M | 3 | 9 | 1,3,5,—– | 18 |
N | 4 | 16 | 1,3,5,7 | 32 |
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