Define Lasar and its Uses in Physics in Hindi / लेसर की परिभाषा एवं उसके उपयोग
Table of Contents / लेख-सूची
लेसर (LASER)
लेसर का निम्न रूपों में ही उपयोग किया जाता है और लेसर LASER का पूर्ण नाम है Light Amplification by Stimulated Emission of Radiation, और जिसका अर्थ है यह है कि विकिरण के उद्दीप्ति उत्सर्जन के द्वारा प्रकाश का प्रवर्धन। यह एक ऐसी युक्ति है जिससे की एक अति तीव्र (highly intense), एकवर्णी (monochromatic), समान्तर (collimated) और उच्च कला-सम्बद्ध (highly coherent) प्रकाश-पुंज प्राप्त किया जाता है।
लेसर किरणीं की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित है
- ये किरणें जो होती है वो पूर्णतः कला-सम्बद्ध (perfectly coherent) होती हैं। ये लेसर किरणें अलग-अलग सैकड़ों-किलोमीटर चलने के बाद भी व्यतिकरण प्रभाव को दर्शाती हैं।
- ये किरणें जो होती है वो एकवर्णी (monochromatic) होती हैं।
- लेसर किरणें दिशात्मक (directional) होती हैं अतः किरण पुंज बहुत संकीर्ण भी होता है औए पृथ्वी से चन्द्रमा पर भेजने पर ये किरणें कुछ मीटर का ही धब्बा बनाती हैं।
- ये किरणें जो होती है वो बिना अवशोषित हुए अत्यधिक दूरी तक जा सकती हैं। जल में इनका अवशोषण भी नहीं होता है।
- लेसर का प्रकाश बहुत ही तीव्र होता है और इनको इतना फोकस किया जा सकता है कि 1017 वाट/सेमी2 की तीव्रता उत्पन्न हो जाए।
- ये किरणें क्षण भर में कठोर से कठोर धातु को भी आसानी से पिघलाकर वाष्पीकृत कर सकरी हैं।
लेसर के उपयोग (Uses of LASER)
- संचार व्यवस्था में लेसर पुंज की सहायता से एक ही चैनल में लाखों सन्देश को प्रसारित किए जा सकते हैं, इसका कारण यह है कि लेसर पुंज की आवृत्ति जो होती है वो बहुत अधिक होती है। संचार की प्रचलित प्रणालियों की तुलना में यह संचार व्यवस्था के लिए लेसर पुंज का प्रयोग अधिक लाभदायक होता है।
- इसका उपयोग जो होता है वो चिकित्सा शास्त्र में नेत्र की शल्य चिकित्सा में भी किया जाता है इसका उपयोग जब किया जाता है तब मानव-नेत्र का दृष्टि पटल या रेटिना क्षतिग्रस्त या अलग हो जाता है तो उसे लेसर किरण पुंज में उत्पन्न तीव्र प्रकाश की सहायता से फिर से जोड़ा जा सकता है। साधारण प्रकाश से इस क्रिया को करने में लगभग आधा सेकण्ड लगता है, तो लेसर पुंज से केवल 10-4 सेकण्ड। इतने कम समय में नेत्र जो है वो गति भी नहीं कर सकता और शल्य क्रिया के समय किसी नेत्र को गतिहीन करने की आवश्यकता भी नहीं रहती है तथा लेसर प्रकाश-पुंज के शल्य क्रिया में प्रयोग के समय जो रोगी होते है उनको मूर्छित करने की भी किसी प्रकार की आवश्यकता नहीं रहती।
- लेसर पुंज का प्रयोग जो होता है वो अभी तक उपग्रहों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है और इसकी सहायता से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों को पहचाना भी जा सकता है। कुछ लेसर पुंजों से किसी प्रकार अवरक्त तरंगें भी प्राप्त होती हैं। इसी की सहायता से रात में किसी भी दुश्मन को आसानी देखा जा सकता है। लेसर पुंज की ही सहायता से युद्ध क्षेत्र में शत्रु सेनाओं की दिशा और स्थिति का सही-सही आकलन भी किया जा सकता है।
- लेसर पुंज युक्त टॉर्च जो होती है उसकी ही सहायता से अन्धे आदमी को राह में पड़े पत्थर, आदि अन्य वस्तुओं का पता भी चल जाता है।
- बहुत बड़ी दूरियाँ को भी नापने में लेसर किरणों का उपयोग किया जाता है, इसका कारण यह है कि जो लेसर किरणें है वो समान्तर होती हैं। पृथ्वी से चन्द्रमा की कुल दूरी भी इसी विधि के द्वारा ही नापी गई है।
भारत में लेसर प्रौद्योगिकी (LASER Technology in India)
भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र (वार्क) के द्वारा 1964 में गैलियम-आसेंनिक (Ga-As) अर्द्धचालक लेसर का निर्माण हुआ था भारत में लेसर प्रौद्योगिकी के विकास के सन्दर्भ में सर्वोच्च संस्था भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र, ट्रॉम्बे के द्वारा रूबी लेसर, सोडियम ग्लास लेसर, कार्बन डाइ-ऑक्साइड लेसर, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी हेतु एक 50 मेगावाट के लेसर आदि का विकास किया गया है।
रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन (DRDO) के द्वारा ही सभी टैंक तथा सभी तोपगनों के लिए लेसर रेंजर्स फाइण्डर्स, लेसर मैटेरियल, अर्द्धचालक लेसर, लेसर उत्पादन क्रिस्टल आदि का विकास किया गया है।
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