ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम

Define First Law of Thermodynamics in Hindi

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (First Law of Thermodynamics)

आमतौर पर ऊर्जा संरक्षण नियम को ही ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम कहा जाता हैं और इसके अनुसार यह ज्ञात होता है कि ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही उसको नष्ट किया जा सकता है, हालांकि इसको एक अवस्था से दूसरी अवस्था में आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है।

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का गणितीय कथन कुछ इस प्रकार से है।

अगर अवशोषण ऊष्मा (Q) से युक्त और (W) कार्य वाले किसी भी प्रक्रम की आन्तरिक-ऊर्जा में परिवर्तन ∆E है, तो
∆E  = Q – W (जब तन्त्र द्वारा कार्य किया जाता है।)
अथवा
∆E  = Q + W (जब तन्त्र पर कार्य किया जाता है।)

ऊष्मा (Heat)

तन्त्र व वातावरण के बीच उनके ताप के अन्तर के परिणामस्वरूप आदान-प्रदान होने वाली वो ऊर्जा जो होती है वो ऊष्मा कहलाती है। आमतौर पर इसे ‘Q’ अक्षर से प्रदर्शित करते है और जब तन्त्र के द्वारा वातावरण को ऊष्मा दी जाती है तब तो ऊष्मा का मान जो है वो ऋणात्मक हो जाता है और जब तन्त्र वातावरण से ऊष्मा अवशोषित करता है तब तो ऊष्मा का मान जो है वो धनात्मक हो जाता है। ऊष्मा की मात्रा कैलोरी होता है और इसका जो SI प्रणाली में मात्नक है वो जूल है।

एक कैलोरी जो होती है वो ऊष्मा की वह मात्रा होती है जोकि एक ग्राम जल का ताप 1°C बढ़ाने के लिए  बिलकुल आवश्यक होती है। ऊर्जा, कार्य व ऊष्मा के मात्रक जोप होते है वो समान होते हैं, लेकिन ऊर्जा, तन्त्र का ऊष्मागतिकी गुण है और जबकि कार्य और ऊष्मा नही हैं।

ऊष्मारसायन (Thermochemistry)

ऊष्मारसायन जो है वो रसायन विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत किसी रासायनिक अभिक्रियाओं में होने वाले ऊष्मीय परिवर्तनों का पूर्ण रूप से अध्ययन किया जाता है उसको हम ऊष्मारसायन कहते है और ऐसी रासायनिक अभिक्रिया जो है जिसमें अभिक्रिया के दौरान ही मुक्त एवं अवशोषित होने वाली ऊष्मा की मात्रा जो है वो ज्ञात होती है और इसको  ऊष्मारासायनिक अभिक्रिया कहा जाता है। ऊर्जा परिवर्तन के आधार पर रासायनिक अभिक्रियाओं जो होती है उसको दो भागों में बाँटा जा सकता है।

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